सब्जियों का राजा
बुधवार, 26 मई 2010
सब्जियों का राजा
नरेन्द्र नाथ
कृषि विभाग की बैठक में दिन यह तय होगया था कि आलू ही सब्जियों का राजा है।जनाब मुसद्दीपा.1च साल पहले भी शासन के चहेते थे।वे ही मुख्य सदर के सलाहकार रहे थे।वे गए , नया शासन आया।जनाब मुसद्दी उनके भी खासमखस हो गए।पाँच साल खास सिपहसालार रहे।उनका भी तक्ष्त पलट गया। ऊपर वाले की महर या जाने वालों की अकड़ जो कल चले गए थे ,वे वापिस लौट आए।जनाब मुसद्दी का रुतबा फिर उनके खासमखस होकर लौट आए।
इसी बात पर चर्चा थी , चर्चा क्या सेमीनार ही होगई।
कृषि विभाग के आला अफसर मौजूद थे।
एक बोले”, भिंडी लोकप्रिय है ,पर वह अकेली- अकेली ही चलती है। कभी- कभी प्याज भिंउी भी बन जाती है। परन्तु स्वाद दोनों का रहता है। उसके साथ कोई दूसरा नहीं चल सकता है।“
”जैसे आप!“कौने से सक्सेना जी चहके।
” हाँ, यह आप ही कह सकते हैं।साल में तीन तबादले आपके ही हुए हैं।मीणाजी ने तो आपको आते ही लपका दिया था।“
”और आपको!“
”आप मेरी बात छोड़िए,“शर्मा जी बोले।हाँ ,आप टिंडे की बात कर सकते हैं।
”टिंडा!“सब हँसे।
परन्तु उधर चंपावत का चेहरा तन गया था।
”क्यों जले पर नमक छिड़कते हो?“वर्मा जी ने टोका।”पर यह सचहै, टिंडे के साथ कोई चल नहीं सकता, टिंडा,...टिंडा
ही रहता है।“
”पर हमारे चंपावत जी टिंडे नहीं हैं।उनकी अपनी पहचान है। सब उनसे जलते हैं।वे तो मंत्री जी के चहेते हैं।“
”फिर अरबी ने आपका क्या बिगाड़ा है? सक्सेना जी ने टोका।
तभी छाया जी उठकर कक्ष से बाहर चलदीं।
”अरे! मेडम आप काँ चलीं?“
”मुझे जरूरी काम है , “वे बोलीं।वे जानती थीं बात उन पर ही आकर रुकने वाली है।
”पर ये तो पहले अरबी थीं , अब तो भर गई हैं,“पीछे से कोई फुसफुसाया।
”देखिए आप विषयान्तर नहीं करें।यहाँ आज चर्चा आलू पर ही हेंआप विषय तक ही अपने आपको सीमित रखें,“शर्मा जी ने छाया जी की ओर देखते हुए कहा।
वे बैठ गईं।
चर्चा शुरु हो गई थी।
”सर! आलू ,पत्ता गोभी के साथ भी चलता हैंउससे स्वाद में भी बढ़ोतरी आ जाती है।“
”फूल गोभी के साथ, वाह क्या स्वाद देता है।“
”अजी, बैंगन के साथ!“
”और टमाटर के साथ!“
”और पालक के साथ!“
”अजी, मैथी के साथ भी।“
आलू का अपना स्वाद भी है।भरवाँ आलू, छोटे आलू, दम आलू,रसे के आलू, सूखे आलू,दही के आलू,आलू का अचार, आलू का हलुआ,वाह!वाह!
सेमीनार में आलू छा गया था।
”तो हमारा बॉस कैसा हो!“
”लाल मिर्च जैसा हो“, पीछे से आवाज आई।
”पानी मांगते फिरोगे “, पीछे से कोई बोला।
”तो हमारा बॉस कैसा हो!“
”बड़े मुसद्दी जैसा हो।“
”जैसा हो ,कैसा हो , पर पूरा आलू जैसा हो।“
शर्माजी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा,” आलू का अपना स्वाद भी है, वह जिसके साथ रहता है,उसका स्वाद भी बढ़ा देता है।“
”जैसे हमारे बड़े मुसद्दी हैं, बाबुओं के राजा, अफसरों के राजा, सबकी पसन्द:राजा पसन्द, आलू राजा।“
” पर मेडम तो हम सबसे नाराज हैं, नागौर की पंचायत में कह गईं, विकास कार्यक्रम में अफसर शाही रोड़ा है। इस पर विचार करें।“
” ”पर यह भी सही है, कि रोड़ा कटहल है,..बैंगन है, कद्दू है, तोरई है, बहुत लोग हैं, जो अपने स्वाद को लेकर अहंकारी बने रहते हैं।“
”आलू नहीं, आलू कभी भी नहीं।“
”आज हमारा नारा है,
आलू जनतंत्र को प्यारा है।
”