gudmar

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012


मधुमेह नाशक गुडमार



भाषा भेद से नाम भेद -

संस्कृत - अजगन्धिनी, मधुनाशिनी, मेषशृंगी। हिन्दी - गुड़मार गुजराती - गुड़मार बंगाली - मेड़ासिंगी

लैटिन - जिम्नेमा सिलवेस्ट्रिस ;ळलउदमउं ैलसअमेजतपेद्ध



परिचय - जिम्नेमात्र लपटे हुए तन्तुयुक्त। सिल्वेस्ट्रात्र काष्ठमय। काष्ठमय बहुवर्षायु दृढ़ शाखाओं वाली, वृक्ष पर चढ़ने वाली बड़ी बेल। इस के पानों को चबा कर गुड़ या शक्कर खाने पर मधुर स्वाद का बोध नहीं होता है।

‘गुड़मार’ मध्य भारत, पूर्वी व उत्तरी भारत में बहुतायत से पैदा होती है। इस की बहुशाखी चक्रारोही लताएं होती हैं। जो ऊंचे वृक्षों का सहारा पाने पर काफी ऊंचाई तक बढ़ जाती हैं। इस की शाखाएं पीले रंग की होती हैं तथा पत्तियां 2 से 3 इंच लम्बी व एक से डेढ़ इंच चौड़ी, अग्रभाग पर नुकीली तथा आधार पर गोलाकार होती हैं। इस को चबाने के बाद गुड़ या शक्कर की मिठास जिह्वा अनुभव नहीं कर पाती है। इसी लिए इसे गुड़मार या मधुनाशिनी कहा जाता है। - फूल-फल आ जाने पर पत्तियों का संग्रह छाया में सुखा कर अच्छी तरह डाट बन्द शीशियों में किया जाता है। इसकी पत्तियॉं ही प्रयोग में आती हैं।



रासायनिक संगठन - ‘गुड़मार’ की पत्तियों में सेपोनिन्स; ेंचवदपदेद्ध स्टिगमेस्टरोल ; ेजपहउंेजमतवसद्ध क्वर्सिटॉल, ;फनमतबपजवसद्ध, जिम्नीमोसाइडस्; हलउदमउवेपकमे द्ध जिम्नेटिक एसिड ;6 प्रतिशतद्ध कैल्शियम ऑक्जेलेट, जिम्नेटिक एसिड(;6 प्रतिशत(, , शर्करापाचक किण्व, फेरिक ऑक्साइड एवं मैगनीज आदि तत्व पाए जाते हैं। गुड़ामार हमारी एन्जाइम प्रवृत्ति को बढ़ा देता है, जिससे शर्करा का पाचन बढ़ जाता है। नई खोजों के आधार पर गुड़मार से पैन्क्रियास के बीटा सैल की क्रिया में बढ़ोतरी आती है। इससे इन्सुलिन के निर्माण में भी वृद्धि पाई गई है।





जीभ की स्वाद परखने की शक्ति को नष्ट करने वाली, पेशाब में जाने वाली शक्कर को रोकने वाली होती है। इस के बीज प्रतिश्याय (ज़ुकाम( तथा कास नाशक होते हैं तथा जड़ विषनाशक होती है। सामान्य मात्रा में यह हृदय और रक्ताभिषरण क्रिया को बढ़ाती है तथा वृक्क और गर्भाशय की क्रिया को उत्तेजित करती है।



गुड़मार अर्क - गुड़मार की पत्तियों को चौगुने जल में भिगो कर विशेष विधि से इस का अर्क खींच लिया जाता है। दिन में दो बार डेढ़-डेढ़ तोला की मात्रा में सेवन करने से यह यकृत ;स्पअमतद्ध की शर्करा बनाने की प्रक्रिया का दमन कर रक्त में शर्करा के बढ़े हुए स्तर को कम करता है।



गुड़मार चूर्ण - इस की पत्तियों का चूर्ण आधा चम्मच प्रातः सांय शहद या गाय के दूध के साथ दिया जाता है। इस से यकृत की क्रिया में सुधार होता है, जिस से उस की मधुजन ;ळसलबवहमदद्ध संचय की शक्ति बढ़ती है। अग्नाशय ;च्ंदबतमंेद्ध और अधिवृक्क ग्रन्थियों ;।कतमदंस ळसंदकेद्ध के स्राव में भी यह सहायता करता है, जिस से अप्रत्यक्ष रूप से यकृत में ग्लूकोज का ग्यायकोजन के रूप में संचय होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।



उपयोग - मधुमेह ;क्पंइमजमे डमससपजनेद्ध और इक्षुमेह ;।सपउमदजंतल ळसलबवेनतपंद्ध - ‘गुड़मार’ का उपयोग प्राचाीन काल से मधुमेह के रोगियों के लिए किया जाता रहा है। मधुमेह की चिकित्सा में दी जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों में गुड़मार प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। मधुमेह के अलावा इक्षुमेह में भी यह लाभ करता है। इस व्याधि में सामान्यतः शर्करा की जिस मात्रा का शरीर में चयापचय हो जाता है तथा पेशाब में शर्करा उत्सर्जित नहीं होती उसी मात्रा में शर्करा तथा स्टार्च का सेवन करने पर पेशाब में शर्करा निकलने लगती है। मधुमेह रोग होने पर कुछ लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे- मुंह सूखना, अधिक प्यास लगना, अधिक भूख लगना, अधिक मात्रा में पेशाब आना ;खास कर रात कोद्ध, शरीर में कमजोरी, थकावट और सुस्ती बनी रहना, शरीर में फोड़े-फुंसी और खुजली होना, आदि। जब रक्त में शर्करा 160-180 उहध् कस के स्तर से अधिक हो जाती है तब यह मूत्र में उत्सर्जित होने लगती है, जिस से जहां पेशाब की जाती है वहां चींटे लगने लगते हैं। पेशाब गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है तथा बार-बार आता है। इन दोनों व्याधियों में ‘गुड़मार’ अर्क के लेने से इन लक्षणों में कमी आती है तथा भोजन से शर्करा बनने की प्रक्रिया पर अंकुश लगता है।





गुड़मार अर्क - गुड़मार की पत्तियों को चौगुने जल में भिगो कर विशेष विधि से इस का अर्क खींच लिया जाता है। दिन में दो बार डेढ़-डेढ़ तोला की मात्रा में सेवन करने से यह यकृत ;स्पअमतद्ध की शर्करा बनाने की प्रक्रिया का दमन कर रक्त में शर्करा के बढ़े हुए स्तर को कम करता है।



गुड़मार चूर्ण - इस की पत्तियों का चूर्ण आधा चम्मच प्रातः सांय गाय के दूध के साथ दिया जाता है। इस से यकृत की क्रिया में सुधार होता है, जिस से उस की मधुजन ;ळसलबवहमदद्ध संचय की शक्ति बढ़ती है। अग्नाशय ;च्ंदबतमंेद्ध और अधिवृक्क ग्रन्थियों ;।कतमदंस ळसंदकेद्ध के स्राव में भी यह सहायता करता है, जिस से अप्रत्यक्ष रूप से यकृत में ग्लूकोज का ग्यायकोजन के रूप में संचय होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।

इस संदर्भ में जो शोघ प्रकाशित हुई हैं, उसके आधार पर गुड़ामार को इन्सुलिन के साथ लेने पर फास्टिंग शूगर में काफी कमी पाई गई ।1ब् टैस्ट में सुधर पाया गया। इसीलिए यह सही है गुड़ामार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पाया गया है,परन्तु इन्सुलिन के साथ आप जो भी हर्बल ले रहे हैं,वह चिकित्सक की देखरेख में लें।



गुड़मार की सहयोगी हर्बल्स हैं दानामैथी, जामुन की गुठली, दालचीनी, करेला, तुलसी, विजयसार, ग्वारपाठा,



गुड़मार से बनने वाला घरेलू आयुर्वेदिक योग-जिसे आप बनाकर प्रयोग में ले सकते हैं



योग - गुड़मार पत्तियॉं 50 ग्राम, ग्राम, जामुन की गुठलियों की मींगी 50 ग्राम, बेल के सूखे पत्ते (बिल्व पत्र) 50 ग्राम तथा नीम की सूखी पत्तियां 50 ग्राम, बबूल की छाल का चूणर््ा 20ग्राम , दालचीनी 40ग्राम करेले के बीजों का चूर्ण 20ग्राम , श्यामा तुलसी 20 ग्राम । सब को कूट-पीस कर कपड़-छन कर शीशी में भर लें। बाजार से मिलने वाली हर्बल में तथा औषधि को खरीदते समय , या किसी बगीचे से चयन करते समय उसकी गुणवत्ता का ध्यान रखें। हम यहाँ किसी भस्म का , किसी ब्रांड औषध का प्रयोग नहीं बता रहे हैं, औषधि आप चिकित्सक की देखरेख में लें,।



मात्रा - 2-3 ग्राम (लगभग आधा छोटा चम्मच( मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ फांक लेना चाहिए।



लाभ - रक्त में शर्करा बढ़ना या मूत्र में शर्करा जाना, दोनों पर ही यह योग शीघ्र अंकुश लगाता है। अग्नाशय और यकृत पर इस का ऐसा अच्छा प्रभाव पड़ता है कि मधुमेह रोग के दुष्प्रभावों में कमी आती है।



परहेज़ - इन औषधियों का सेवन करते समय अगर आप मीठी चीज़ें, खटाई, तले पदार्थ और लाल मिर्च विशेषकर आलू , तथा चावल का प्रयोग कम करते हैं, तो लाभ शीघ्र ही होगा।



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