मैृेयी

सोमवार, 19 जुलाई 2010

यह कहानी उस गाँंव की है, जहाँं नदी धीरे-धीरे सूखती चली गई थी। गांँव के लोग धीरे-धीरे शहर की ओर जाना चाह रहे थे। नदी ही तो उनका जीवन था।
रात मामू गधे ने हरी घास की जगह सूखी घास पर मुंह को बार-बाहर हटाते सोचा,... यही रहा तो फिर मौत ही साथ देगी,...
...मीरा गाय चुप थी,... जानती थी,... उसका मालिक रमेश रोजाना यही सोचता है कि उसको जंगल में छोड़कर चुपचाप शहर चला जाए। पेड़ भी उदास थे,... लोगों के धीरे धीरे जाने से रसोई से उठता धँुंआ कम होता जा रहा था,... हरजू कौआ जो पहले अच्छे स्वास्थ्य का धनी था, वह भी धीरे धीरे कमजोर होता जा रहा था,... सूखती नदी का दर्द सबका अपना था।
पर बाहर कालूू कुत्ता चुपचाप धूप में लेटा हुआ था।
हल्की सी गर्मी आ गई थी। फागुन कभी का जा चुका था। चैत्र के आने के साथ ही मौसम बदलने लगता है, पर कालू को पता नहीं क्यों, और कुत्तों की अपेक्षा हल्की गर्मी ही अधिक अच्छी लगती थी।
‘यहांँ से जब सब चले जाएंगे ,हम कहाँं रहेंगे’, लंबू बगुले ने पूछा।
‘यहीं।“
‘पर करेंगे क्या?“
‘जो अब तक करते रहे हैं।“
‘अभी तो हम दूसरों के सहारे  रह रहे हैं। बंगाली के यहांँ मछली बनती थी, ..... वह पोखर में मछली पालते हैं, ..... वहीं से मैं भी कुछ ले आता था, ..... पर अब!“
‘हॉं, क्या मछली के बिना तुम नहीं रह सकते?“
बगुला चुप था। फिर बोला,...” तुम भी तो हड्डी के बिना नहीं रह सकते।“
‘मैं यही सोच रहा हूं। इसीलिए धूप खा रहा हूंँ।“
‘धूप’
‘हाँं, ..... परेशानी हो, ..... तब दिमाग चलता है, ..... जाना भागना कहांँ तक भागोगे,“ वह बोला।
‘हाँ, तुम भी तो उस साधु के साथ यहांँ आए थे।“
‘हाँं, वह भी घर से भागा था,... उसकी पत्नी थी,... बेटा था,...बोला संसार में दुख है। उसका मकान था,... बड़ा घर था। पिता ने पूछा- ‘बेटा यहांँ क्या कष्ट है।“
बोला,” दुख है,... जीवन दुखमय है,... मृत्यु द्वार है, बुढ़ापा दुख है, सारा संसार दुख की खोज में भटक रहा है,... सुख तो दुख से मुक्ति में है, वह है, त्याग,... संसार की तृष्णा ही दुख है। ... भागो,“... वह घर छोड़ गया था, मैं भी उसके साथ चल पड़ा।“
‘फिर?“
‘हम यहाँं तक साथ आए।’
रास्ते में यह बरगद मिला था,पहले यह भी युवा था, अब बूढ़ा हो चला है।इसकी जटाएँ नीचे आने लगी हैं,  वह बोला,” तुम इनके साथ कहाँं तक जाओगे?“
‘पता है, महाभारत के बाद, तुम ही तो युधिष्टिर के साथ स्वर्ग जाने को गए थे, उसके सारे परिजन एक के बाद हिमालय की वादियों में गिरते चले गए,... पर तुम साथ रहे,... तुम तो सशरीर साथ गए थे,... फिर तुम क्यों भटक रहे हो?“
मैंने उसकी बात को सुना, ... उस साधु की ओर देखा, ... उसके साथ फिर हजारों लोगों की भीड़ लग गई थी, ... वह सभी को इस संसार के दुख से दूर जाने की सलाह दे रहा था। कहता था तृष्णा ही दुःख है, यह संसार मात्र दुःख है।“
उस दिन वह अकेला था। उसके शिष्य दूर नदी किनारे पर रुक गए थे।
यहीं इस नदी के किनारे वह रुका था।
मैंने पूछा था- ‘हम कब तक भटकते रहेंगे?“
वह चाैंक गया था- उसने इधर उधर देखा, वहाँं कोई इन्सान नहीं था।
तब मैंने फिर सिर ऊपर उठाया, बोला- ‘यह मैं हूं,मैं, तुम्हारे साथ हिमालय पर भी गया था।तुम्हारे साथ सदियों से चल रहा हूंँ। हम कब तक चलते रहेंगे?“
... क्या कभी कोई मुकाम आएगा? जब रुकेंगे, ...हम चलते हैं, चल रहे हैं, पर पीछे मुड़कर नहीं देखते, जिस गांँव को छोड़कर आते हैं वह पहले से बदतर तो नहीं होगया।हम सोचकर चलते हैं,हम दुनिया ठीक करने आए हैं,  वह हमारे आने के बाद पुनः वैसी ही हो जाती है, हांँ जो काम करने वाले थे, ... युवा थे, वे हमारे साथ चले आते हैं।हम उन्हें उनके काम से भी हटा देते हैं। हम उन्हें एक नया सपना सोंपते हैं,पर कभी सोचा है,यह पहले से भी अधिक घटिया है हम उन्हें कहांँ ले जा रहे हैं, ... क्या यह दुनिया बस एक सपना हैै?’’ उसने बहुत प्यार से मुझे देखा।
‘तुम तभी सदियों से मेरे साथ चल रहे हो।’
हाँ, मेरे सवाल कभी खत्म होने वाले नहीं हैं,,लगता है मेरे माथे पर आग सी जल उठी है।पर मैं केश मुंँड़ाने वाला नहीं हूँ।“मेंने कहा था।
 ”मेरा काम बस चलना ही है, ... तुम्हें तुम्हारा काम तलाश करना होगा। तुम्हारा रास्ता अब मुझसे अलग है, यहांँ तक मेरे साथ चले, अब शुक्रिया।“,
”तुम्हारा रास्ता तुम खुद तलाश करो, क्या चाहते हो?..’ वह वहाँं से उठते हुए बोला था।
‘पर मेरे सवाल का उत्तर?“
‘एक दिन यह नदी भी सूख जाएगी, ... तो इन्सान यहाँ से भी भागेंगे।, ... तब तुम्हे खुद पता लगेगा, ... तुम्हारा उत्तर क्या है?“
‘और तुम?“
‘ जब तक नदियाँं हैं, पानी है, ... तब तक जीवन है, जब तक जीवन है, तभी तक सुख-दुख का संघर्ष है, जिसके  पास नहीं है,  वह दुखी है, उसके पास वह सब क्योंनहीं है, जो सबके पास है, वह भी दुखी है, जिसके पास है, कोई लूट न ले जाए, ... वह भी दुखी है।जब तक दुख है, नदी है, जल है, जीवन है, मैं भी रहूंगा।“
“हाँं, जब नदी सूखेगी, ... तब तुम सुनोगे, धरती की आवाज, सूखी सीपियों का गान, तप्त घाटी, गरम रेत, हवा जब सन्नाटे को तोड़कर हंँसेगी, ...उस विवशता  में, ... तब तुम जगोगे,“ ... वह बोला।
‘और तुम!“
‘मैं  तुमसे मिलने अवश्य आऊॅगा,“ वह बोला।”शायद मुझे भी मेरे सवालों का उत्तर मिल जाए।“
कालू कुत्ता, धूप के कतरे की तरफ जो अब पेड़ के सहारे से उधर जमीन पर उतर गया था, उधर जाकर लेट गया।
‘तुम्हारी उमर तो इतनी नहीं है, “लंबू बगुले से बोले रहा नहीं गया।
‘हाँं, भाई, वो देखो,... उधर बंगाली के मकान के पास सूखी मछली पड़ी है, शायद तुम्हारा अच्छा लंच हो जाए।“
‘ओह!“ लंबू उधर लपका।
कालूू की आंँखे भर आई ंथीं। सब भाग रहे हैं, जहांँ पानी है, वे भी भाग रहे हैं, जहाँं सूखा है, वे भी भाग रहे हैं, उसे याद आया,... जब स्वर्ग का विमान आया था,... सब चढ़ने लगे, तब वह चुपचाप नीचे उतर आया।
‘क्यों? तुम नहीं जाओगे,“ पूछा गया था।
‘हाँं,में  इन्सान के साथ में जन्मा हँूं, उसे छोड़कर मैं कहीं नहीं  जा सकता ,वही तो मेरे साथ धरती पर आया है।...
‘तुम तो महान हो गए हो,“चालक बोला था।
 ”पर जो लोग यहीं रहेंगे, जिनको न स्वर्ग चाहिए न नर्क.... उनके साथ कौन रहेगा?“ वह बोला था।
”तुम्हारे साथ यहाँ कौन रहेगा
”धरती ,जल, आग,वायु और आकाश,“वह नीचे उतर आया था।
उस साधु के साथ भी वह नहीं चल पाया,... कहांँ तक दौड़ता, यह कैसी दौड़ है,यहाँ दौड़ना ही धर्म है। जो रुक गया वहीं मौत की आहट सुनाई देती है। क्या मौत ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है, वह दार्शनिक होने लग गया था। याद आई वह गिलहरी उसका बच्चा चल नहीं पा रहा था,उसकी टाँंग में तकलीफ थी,कुछ बदसूरत भी था। पर उसकी माँ की आँंखें उसे जिस सुंदरता से निहार रहीं थीं ,   वही तो धरती का रस है, जो जन्म देता है,ठहराता है, सुबह से शाम, शाम से सुबह गति देता है,... शायद यही तो जीवन है।याद आया घर से निकलते समय पिता ने कहा था ,अपनी धरती कैसी भी हो, रहना तो यहीं है, अपनी गली में चाहे दुम हिलाओ, या भोंको, जो आजादी यहां है, वह और कहाँं है? वह आंखें मूंँदे चुपचाप लेटा था,... मौन ,कोई विचार वहांँ नहीं था,... दूर बगुले की सूखी मछली को उलटने-पुलटने की आवाजंे आ रहीं थीं।

1 टिप्पणियाँ:

Dinesh pareek ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा बहुत कुछ है जो में आपसे सिख सकता हु और भुत कुछ रोचक भी है में ब्लॉग का नया सदस्य हु असा करता हु अप्प भी मेरे ब्लॉग पे पदारने की क्रप्या करेंगे कुछ मुझे भी बताएँगे जो में भी अपने ब्लॉग में परिवर्तन कर सकूँगा में अपना लिंक निचे दे रहा हु आप देख सकते है
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धन्यवाद्
दिनेश पीक

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